( तत्त्व ज्ञान के साथ )
हम श्री शिव शिवस्वरोदय शास्त्र के विषय में जानने जा रहे हैं। यह एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है। भगवान शिवजीने माता पार्वती को शास्त्र का ज्ञान दिया। दैनंदिन जीवन में इसका इस्तेमाल करने से मानवजातिका कल्याण होनेवाला है।
जैसा कि हम जानते हैं की हम नाकसे सांस लेते हैं। लेकिन अगर आप थोड़ा ध्यान दें तो आप देखेंगे कि हम एक ही नासिका छिद्र से सांस ले रहे हैं। सांस किस तरफ से आ रही है यह समझनेकेलिये नाक का एक छिद्र बंद करें और सांस लें। हम जिस तरफ से सांस ले रहे हैं उसी तरफ से सांस छोड़ना चाहते हैं। पहली तरफ से नथुनी बंद करें और दूसरी तरफ से तीन बार सांस लें और छोड़ें। आप देखेंगे कि एक तरफ से बिना रुकावट सांस आ रही है या नहीं वो देखें। इससे चालु स्वर और बंद स्वर पहचान सकते है। दुसरी पद्धति में अपना हाथ अपनी नाक के पास रखें और गहरी सांस लें। जोर से सांस छोड़ें. आप देखेंगे कि सांस एक तरफ ज्यादा चल रही है। कुछ लोगों को दाहिनी ओर से सांस आती है तो कुछ को बायीं ओर से, दोनों ओर से श्वास शुभ होती है। जिस समय हम दाहिनी ओर से सांस लेते हैं उसे सूर्यनाड़ी कहते हैं और जिस समय हम बाईं ओर से सांस लेते हैं उसे चंद्रनाड़ी कहते हैं।
कभी-कभी हमें ऐसा महसूस होता है कि श्वास दोनों ओर से एक समान हो तो उसे हम शुषुम्ना कहते हैं। स्वर तीन प्रकार के होते हैं। सूर्य, चन्द्र और शुषुम्ना।
शुषुम्ना स्वर यह आध्यात्मिक प्रगति का होता है। शुषुम्ना स्वर उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो महसूस करते हैं कि वे आध्यात्मिक प्रगति करना चाहते हैं। यह व्यवहार में उपयोगी नहीं है। ऋषियों को भी यही स्वर प्राप्त करना पड़ता है। प्रतिदिन तीन घंटे शुषुम्ना स्वर का प्राकृतिक समय हैं सूर्योदय, सूर्यास्त और दोपहर। सूर्योदय से आधा घंटा पहले और सूर्योदय के आधे घंटे बाद। इसके अलावा सूर्यास्त और मध्याह्न का 1-1 घंटा कुल मिलाकर तीन घंटे होता है। इसे प्राकृतिक शुषुम्ना स्वर को काल कहा जाता है। इसलिए पहले लोग त्रिकाल संध्या करते थे, लेकिन आज के तेज रफ्तार युग में एक बार भी संध्या करने का समय नहीं मिलता। यह अभी सोचने वाली बात है।
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